Sunday, July 18, 2010

झाया बरसात (I have tried to type in Hindi & I don’t know much about it, sorry for errors)

कुछ अरसे पहले की बात है,
जब हम अपने आपमें मदहोश रहते थे,
ज़माने की फ़िक्र तो हमे कभी न थी,
वोह वक़्त था,
जब हम सब नज़रअंदाज़ किया करते थे.

कुछ सपने हमने भी संजोये थे,
और उन्हीमें ज़िन्दगी ढूंडा करते थे,
बूंदाबांदी तोह तभी हुआ करती थी,
हम वोह नासमझ थे,
जो आपनी प्यास पानी से बुजाया करते थे.

पर कल रात की बात कुछ और थी,
अब हम नासमझ तो न थे,
जमकर बरसात हुई मेरे आँगन में,
पर नजाने क्यू,
हम किवाड़ लगारकर प्यास छुपाते रहे.

वोह बरसकर वापिस लौट चले,
और हम 'प्यासे' खुला आसमा देखने निकल पड़े,
उनके जाते हुए कदमो ने नजाने क्या कुछ न कह दिया,
हम भी तोह झाया थे,
जो उनको बरसने दिया और खुद को तरसने दिया.

हर बूंद मेरे आँगनकी कह रही थी,
की उसके सपने भी टूट कर यही गिरे पड़े है,
हमने कुछ सपने बटोरने भी चाहे ,
पर वोह तोह बुँदे थी,
और हम झाया वहा खड़े भी न रह पाए.

2 comments:

  1. आपने कौन सा टूल हिंदी टाइप करने के लिए लिया है? गूगल ट्रांसलिट्रेट या क्विल पैड आजमा कर देखें. बहुत सी गलतियों को आप उस शब्द पर क्लिक कर ठीक सकते हैं.

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