कुछ अरसे पहले की बात है,
जब हम अपने आपमें मदहोश रहते थे,
ज़माने की फ़िक्र तो हमे कभी न थी,
वोह वक़्त था,
जब हम सब नज़रअंदाज़ किया करते थे.
कुछ सपने हमने भी संजोये थे,
और उन्हीमें ज़िन्दगी ढूंडा करते थे,
बूंदाबांदी तोह तभी हुआ करती थी,
हम वोह नासमझ थे,
जो आपनी प्यास पानी से बुजाया करते थे.
पर कल रात की बात कुछ और थी,
अब हम नासमझ तो न थे,
जमकर बरसात हुई मेरे आँगन में,
पर नजाने क्यू,
हम किवाड़ लगारकर प्यास छुपाते रहे.
वोह बरसकर वापिस लौट चले,
और हम 'प्यासे' खुला आसमा देखने निकल पड़े,
उनके जाते हुए कदमो ने नजाने क्या कुछ न कह दिया,
हम भी तोह झाया थे,
जो उनको बरसने दिया और खुद को तरसने दिया.
हर बूंद मेरे आँगनकी कह रही थी,
की उसके सपने भी टूट कर यही गिरे पड़े है,
हमने कुछ सपने बटोरने भी चाहे ,
पर वोह तोह बुँदे थी,
और हम झाया वहा खड़े भी न रह पाए.
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ReplyDeleteSurkiya....jaror try karunga
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